हमारे हिन्दू धर्म में एकादशी के व्रत का बहुत महत्त्व है, इसमें भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। हर साल कुल 24/25 एकादशी के व्रत होते है, जिसमे से हर महीने 2 व्रत होते है इसी तरह फरवरी के महीने में पहले षटतिला एकादशी का व्रत और फिर जया एकादशी का व्रत होता है। सभी एकादशीयो में व्रत की कथा को सुनना और पढ़ना बहुत ही शुभ और लाभकारी माना जाता है। इस पोस्ट में हम आपको जया एकादशी 2021 की व्रत कथा हिंदी में बताने वाले है - Jaya Ekadashi Vrat Katha 2021 In Hindi
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Jaya Ekadashi Ki Vrat Katha 2021 in Hindi |
जया एकादशी 2021 की व्रत कथा हिंदी में - Jaya Ekadashi 2021 Vrat Katha In Hindi
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न किया है - “हे भगवान! अब कृपा कर आप मुझे माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्वत्व विस्तारपूर्वक बता रहे हैं। माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी में किस देवता की पूजा करनी चाहिए और इस एकादशी व्रत की कथा क्या है? उसके करने से किस फल की प्राप्ति होती है?
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - “हे अर्जुन! माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने से मनुष्य भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छुटकारा मिल जाता है। इस दिन विधिपूर्वक उपवास व्रत करना चाहिए। मैं अब आपको जया एकादशी व्रत की कथा कहता हूं। "
जया एकादशी की कहानी हिंदी में - एक समय की बात है नंदन वन में उत्सव का आयोजन हो रहा था। देवता, ऋषि मुनि सभी उत्सव में मौजूद थे। उस समय गंधर्व गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थी। इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था। जैसा कि सुरीली उसकी आवाज़ थी और साथ ही रूपवान भी थी। गंधर्व कन्याओं में एक पुष्यवती जिसे नृत्यांगना भी कहा जाता है।
पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या कन्या ने माल्यवान नामक गंधर्व को देखकर ही उस पर आसक्त हो गई और अपने हाव-भाव से उसे पुनः प्राप्ति का प्रयास शुरू कर दिया। माल्यवान भी उस पुष्पवती पर आसक्त होकर अपने गायन का सुर-ताल भूल गए। इससे संगीत की लय टूट गई और संगीत का सारा आनंद बिगड़ गया।
सभा में उपस्थित देवगणों को यह अच्छा नहीं लगा। माल्यवान के इस कृत्य से इंद्र भगवान नाराज होकर उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में ज्योति अमृत सा जीवन भोगो क्योंकि आप संगीत जैसी पवित्र साधना का तो अपमान किया ही है साथ ही सभा में उपस्थित गुरुजनों का अपमान किया है। इंद्रा भगवान के शाप के प्रभाव से दोनों पृथिवी पर हिमालय पर्वत के जंगल में कांची जीवन व्यतीत करने लगे।
कांची जीवन बहुत ही कष्टदायी थी। दोनों बहुत दुखी थे। एक बार माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन संयोगवश दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया और न ही कोई पाप कर्म किया। उस दिन केवल फल-फूल खाकर ही पूरा दिन व्यतीत किया गया। भूख से व्याकुल और ठंड के कारण बड़े ही दुःख के साथ पीपल वृक्ष के नीचे इन दोनों ने एक-दूसरे से सटकर बड़े क्रूरता पूर्वक पूरी रात काटी। पूरी रात अपने द्वारा किए गए कृत्य पर पश्चाताप भी करते रहें और भविष्य में इस प्रकार के भूल न करने की भी ठान लिया था साथ ही दोनों की मृत्यु हो गई हैं।
अंजाने में ही सही उन्होंने एकादशी का उपवास किया था। भगवान के नाम का जागरण भी हो गया था क्योंकि प्रभु की कृपा से इनकी देवीचिनी से मुक्ति हो गई और पुनः अपनी अत्यंत सुंदर अप्सरा और गंधर्व की देह धारण करके और सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत होकर दोनों स्वर्ग लोक को चले गए।
देवराज इंद्र ने उन्हें स्वर्ग में देखकर आश्चर्यचकित हुए और पूछा कि वे श्राप से कैसे मुक्त हुए। तब उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु की उन पर कृपा हुई। हमसे अंजाने में माघ शुक्ल एकादशी यानि जया एकादशी का उपवास हो गया जिसके प्रताप से भगवान विष्णु ने हमें कांची जीवन से मुक्त किया। कुछ इस तरह से जया एकादशी का व्रत करने से भक्त को पूर्व में किए गए पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है।
अन्य जानकारी-
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